उत्तराखंड के जोशीमठ में बड़े पैमाने पर चल रही निर्माण गतिविधियों के कारण जमीन धंसी है. इमारतों की दीवारों और सड़कों में खतरनाक दरारें पड़ी हैं. यह कहना है हिमालय भूविज्ञान संस्थान के निदेशक कला चंद सेन का. उन्होंने चेतावनी देते हुए कहा कि अब जोशीमठ की जमीन ज्यादा दबाव नहीं झेल सकती है. उन्होंने यह भी साफ किया कि भूस्खलन के मलबे पर जोशीमठ बनाया गया था. दबाव बढ़ा तो हालात और बदतर हो सकते हैं. जोशीमठ शहर में हो रहे भू धंसाव और घरों में आ रही दरारों पर वैज्ञानिक पर पर्यावरणविद रवि चोपड़ा ने खास बातचीत की.उन्होंने कहा कि 2013 और चार धाम ऑल वेदर रोड के ऊपर सुप्रीम कोर्ट की बनी हाई पावर कमेटी ने कई सिफारिशें की थी.इसमें कहा गया था कि जोशीमठ शहर क्योंकि मैन सेंट्रल थ्रस्ट के बीच है, इसलिए वहां पर जलविद्युत परियोजनाएं नहीं बनाई जानी चाहिए. रवि चोपड़ा ने कहा कि वहां पर जल विद्युत परियोजनाओं में हुए ब्लास्टिंग की वजह से शहर में बड़ी दरारें आई हैं.उन्होंने ये भी कहा कि सरकार वैज्ञानिकों की दी गई सलाह पर काम नहीं करती है.मीडिया रिपोट्स के मुताबिक, स्थानीय लोग इमारतों की खतरनाक स्थिति के लिए मुख्यतः राष्ट्रीय तापविद्युत निगम लिमिटेड (एनटीपीसी) की तपोवन-विष्णुगढ़ परियोजना को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं. जोशीमठ बचाओ संघर्ष समिति के संजोयक अतुल सती ने कहा कि हम पिछले 14 महीनों से अधिकारियों का ध्यान आकर्षित करने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन हमारी बात पर ध्यान नहीं दिया गया. अब जब स्थिति हाथ से निकल रही है, तो वे चीजों का आकलन करने के लिए विशेषज्ञों की टीम भेज रहे हैं. उन्होंने कहा कि अगर समय रहते हमारी बात पर ध्यान दिया गया होता तो जोशीमठ में हालात इतने चिंताजनक नहीं होते.
ताजा न्यूज़
September 10, 2024