Group of young people marching together in the city downtown protesting .
प्रधानाचार्य की सीमित भर्ती के विरोध में राजकीय इंटर कॉलेजों के प्रवक्ता आंदोलनरत हैं और प्रदेश के सैकड़ों विद्यालयों में कुछ दिनों से करीब तीन लाख छात्र-छात्राएं का पठन पाठन का माहौल चौपट हो रहा है।सरकार और शिक्षकों की इस लड़ाई में जीत किसी की भी, लेकिन हार हजारों गरीब व अपवंचित नौनिहालों की तय है। यदि सरकार भर्ती परीक्षा रद कर भी देती है फिर भी, शिक्षकों का वरिष्ठता विवाद सुलझता नहीं दिख रहा है। आखिर 90 प्रतिशत प्रधानाचार्य विहीन इंटर कालेजों को प्रधानाचार्य कैसे मिलेंगे, इस रास्ते को नहीं तलाशा जा रहा है,जिसका सीधा प्रतिकूल प्रभाव हजारों ग्रामीण विद्यार्थियों पर पड़ता दिख रहा है।शिक्षक अपनी पदोन्नति का पक्ष मजबूती से सरकार के समक्ष रख रहे हैं, लेकिन अभावग्रस्त उन गरीब ग्रामीण अभिभावकों की वेदना कौन सुनेगा जिनके बच्चे सरकारी राजकीय इंटर कालेजों के भरोसे हैं। गांवों में ट्यूशन सिस्टम का भी अभाव है। 50 प्रतिशत ग्रामीण परिवार ट्यूशन फीस देने में सक्षम नहीं हैं। शिक्षकों के आंदोलन के बाद इन सवालों के जवाब भी तलाशने होंगे। सीधी भर्ती को प्रवक्ता संवर्ग के कई शिक्षक प्रदेश सरकार की पहल को सकारात्मक भी मान रहे हैं।शिक्षकों ने दो वर्ष पहले प्रधानाचार्य संशोधित नियमावली का विरोध नहीं किया, और न ही यह बताया कि आखिर प्रधानाचार्य नियमावली होनी कैसी चाहिए थी, इस प्रधानाचार्य नियमावली को बने लगभग दो वर्ष पूर्ण हो चुके हैं। संगठन, सरकार और विभाग के मध्य इस बीच कई बैठकें हुईं और कुछ तो ऐसी भी थीं जिनमें इस नियमावली का जिक्र भी हुआ, बाकायदा विभाग के मिनट्स में नियमावली और प्रधानाचार्य के पदों पर विभागीय सीमित परीक्षा के आधार पर पदोन्नति को स्थान भी मिला। अब जब यह पद उत्तराखंड लोक सेवा आयोग को जा चुके हैं तो यह पद भी एक तरीके से विवादित हो चुके हैं और इन पदों पर वरिष्ठता के आधार पर पदोन्नति नहीं की जा सकेगी।
