मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने जब देवभूमि में ‘मजार जिहाद’ का जिक्र किया तो उत्तराखंड में एक नई चर्चा शुरू हो गई। राज्य में यह मुद्दा जबरदस्त तरीके से गरमाया है। आखिर ये मुद्दा है क्या और इस पर इतना विवाद क्यों हो रहा है? इसकी गहनता से जांच और करीब से जानने के लिए एनबीटी ने तमाम पहलुओं की पड़ताल की। तमाम लोगों से इस पर बातचीत की। उत्तराखंड में वर्तमान समय में तमाम धार्मिक संगठनों ने सरकारी जमीनों पर अतिक्रमण कर बनाई गई असंख्य अवैध मजारों से मुक्त कराने के लिए आवाज उठाई है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार उत्तराखंड में वन भूमि पर एक हजार अवैध मजारें हैं जो वन विभाग ने चिह्नित की हैं जबकि वक्फ बोर्ड के अनुसार उत्तराखंड में लगभग पांच हजार धर्मस्थल पंजीकृत हैं।वन विभाग के आंकड़ों के अनुसार जांच में पाई गई मजारें ज्यादातर रिजर्व फॉरेस्ट क्षेत्र में हैं। जिन संरक्षित वन क्षेत्रों में (राष्ट्रीय उद्यान, अभ्यारण्य व कंजर्वेशन रिजर्व) से लकड़ी उठाने तक पर पाबंदी है वहां पर धार्मिक संरचनाएं खड़ी कर दी गई हैं और वन विभाग के अधिकारी मूकदर्शक बने रहे। यहां तक कि राजाजी टाइगर रिजर्व में साल 1983 से पहले से ही धार्मिक स्थल बने हुए हैं लेकिन वन विभाग इतने समय तक मौन रहा जबकि कार्बेट टाइगर रिजर्व ने इस संबंध में कोई जानकारी नहीं दी है। वन विभाग भी इन धार्मिक स्थलों के निर्माण के मामले में जवाबदेही से बचता रहा है।