उत्तराखंड के जोशीमठ में अभी भी संकट बरकरार है. इमारतें दरक रही हैं और इसको लेकर तमाम तरह के दावे भी किए जा रहे हैं. वहीं इस संकट पर ब्रिटेन के वैज्ञानिक डेव पेटली की एक रिपोर्ट सामने आई है. इसमें उन्होंने बताया है कि आखिर असली कारण क्या है? रिपोर्ट के मुताबिक पेटली का मानना है कि जोशीमठ के इमारतों में दरारें भूमि धंसने के कारण नहीं आई, बल्कि इसके पीछे की मुख्य वजह त्वरित भूस्खलन है.मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक ब्रिटेन में हल यूनिवर्सिटी के उप-कुलपति डेव पेटली ने 23 जनवरी को अपने अमेरिकी भूभौतिकीय संघ ब्लॉग में इससे जुड़ी जानकारी साझा की थी. इसमें उन्होंने लिखा कि जोशीमठ में कोई संदेह नहीं है कि यह एक भूस्खलन है और शहर नीचे की ओर जा रहा है. उन्होंने लिखा कि गूगल अर्थ इमेजरी से स्पष्ट है कि यह शहर एक प्राचीन भूस्खलन पर बना है.वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के निदेशक कलाचंद सेन ने भी पेटली से सहमति जताते हुए कहा कि भूस्खलन ढलान वाले क्षेत्र में होता है. इसमें वर्टिकल और हॉरिजॉन्टल दोनों तरह की गति शामिल होती है. इससे पहले भी कलाचंद ने 14 जनवरी को कहा था कि जोशीमठ संकट को भू-धंसाव का कहना गलत है.उन्होंने कहा कि हम यह देखने के लिए भूभौतिकीय अध्ययन कर रहे हैं कि कैसे उपसतह कारकों ने सतह पर दरारों में योगदान दिया. सेन ने कहा कि भूस्खलन तीन से चार कारणों से हो सकता है. इसमें पहला कारण है बारिश, दूसरा है टेक्टोनिक मूवमेंट और तीसरा कारण मानव गतिविधियां है. यहां तीनों की संभावना है. कलाचंद सेन ने कहा कि कुछ क्षेत्र कम प्रभावित हैं, जबकि कुछ गंभीर रूप से प्रभावित हैं. जैसे ही हमारे पास डेटा होगा, हम बता पाएंगे कि कितना बड़ा क्षेत्र खिसक सकता है. वहीं भूवैज्ञानिक एसपी सती और नवीन जुयाल के अनुसार, जोशीमठ के धंसने और फिसलने दोनों के संकेत मिले हैं.वहीं मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक गंगा आह्वान की सदस्य मल्लिका भनोट ने हेलंग बाईपास के निर्माण पर भी सवाल खड़े किए. उन्होंने कहा कि चार धाम परियोजना के तहत हेलंग बाईपास के निर्माण से यह संकट स्पष्ट रूप से जुड़ा हुआ है. अगर इस बात की जानकारी थी कि यह क्षेत्र भूस्खलन के लिए इतना संवेदनशील है, तो सरकार इसे मेगा परियोजनाओं के साथ एक उच्च पर्यटन क्षेत्र में कैसे विकसित कर रही थी?