चिपको आंदोलन की स्वर्ण जयंती पर ‘पाणी राखो आंदोलन’ के प्रणेता सचिदानंद भारती को केदार सिंह रावत पर्यावरण पुरस्कार से सम्मानित किया गया। सी पी भट्ट पर्यावरण एवं विकास केंद्र हर साल केदार घाटी में चिपको के नायक रहे केदार सिंह की स्मृति मे पर्यावरण के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य करने वाले व्यक्तियों एवं संस्थाओं को यह सम्मान प्रदान करता है। इसमें 21हजार रुपये नगद, अंगवस्त्र और सम्मान पत्र प्रदान किया जाता है।रविवार को सम्पन्न मुख्य कार्यक्रम में चिपको आंदोलन से जुड़े कार्यकर्ताओं ने अपने अनुभव साझा किए। चिपको प्रणेता और 1982 चिपको आंदोलन को नेतृत्व प्रदान करने के मैग्सेसे अवार्ड से सम्मानित चंडी प्रसाद भट्ट ने चिपको के अपने संस्मरणों को साझा करते हुए कहा की आज से ठीक पचास वर्ष पूर्व किस प्रकार इस पूरी केदारघाटी के लोगों ने मिलकर जंगलों को बचाया था। चिपको के अतीत की यादों से नई पीढ़ी को रूबरू कराते हुए प्रख्यात पर्यावरणविद भट्ट ने उस दौर में तत्कालीन उत्तर प्रदेश सरकार और पेड़ काटने आई साइमंड कंपनी से पेड़ों को कटने से बचाने के लिए आंदोलनकारियों के बीच आंखमिचोली चलती रही।मंडल में मुंह की खाने के बाद सरकार ने सायमंड कंपनी को केदार घाटी के बडासू और न्यालसू गांव के उपर स्थित सीधा के जंगल में मौजूद अंगु के पेड़ अलॉट कर दिए थे। जिसकी जानकारी हमारे साथी रहे केदार सिंह रावत से हमें मिली। फिर भी 1973 से लेकर दिसंबर 1973 तक इन पेड़ों को कटने के लिए केदारघाटी में जबरदस्त जन आंदोलन चला और पेड़ों को बचाने में सफल रहे।