त्रिशूल चोटी आरोहण के दौरान हिमस्खलन (एवलांच) की चपेट में आए नौसेना के पांच पर्वतारोहियों और एक पोर्टर में से चार को हेली रेस्क्यू टीम ने खोज तो लिया, लेकिन अभी उन तक नहीं पहुंच पाई। दो अन्य का अभी कुछ पता नहीं चल सका। अलबत्ता, शनिवार सुबह ही रेस्क्यू आपरेशन से जुड़ी हाई एल्टीट्यूड वारफेयर स्कूल गुलमर्ग (हवास) की पांच सदस्यीय टीम त्रिशूल पर्वत पर साढ़े पांच हजार मीटर ऊंचाई वाले इलाके में पहुंच गई। रविवार सुबह यह टीम रेकी में दिखे पर्वतारोहियों को रेस्क्यू करने के लिए आगे बढ़ेगी। हवास को उच्च हिमालयी क्षेत्रों में रेस्क्यू आपरेशन की विशेषज्ञता हासिल है।
तीन सितंबर को मुंबई से नौसेना का 20 सदस्यीय दल त्रिशूल पर्वत की चोटी आरोहण करने के लिए रवाना हुआ। वर्ष 1971 के युद्ध में पाकिस्तान पर भारत की ऐतिहासिक जीत के उपलक्ष्य में मनाए जा रहे स्वर्णिम विजय वर्ष के तहत नौसेना के पर्वतारोही माउंट त्रिशूल अभियान पर निकले हैं। 7120 मीटर ऊंची यह चोटी उत्तराखंड के बागेश्वर जिले में है। वीरवार को छह हजार मीटर की ऊंचाई पर स्थित कैंप-तीन से नौसेना के 10 पर्वतारोही आगे बढ़े। शुक्रवार सुबह करीब 6700 मीटर की ऊंचाई के आसपास दल के पांच सदस्य और एक पोर्टर एवलांच की चपेट में आ गए। इस पर बाकी सदस्य अभियान रोक कर वापस कैंप में लौट आए। लापता सदस्यों की खोजबीन के लिए शुक्रवार दोपहर बाद से रेस्क्यू चल रहा है। नेहरू पर्वतारोहण संस्थान (निम), हाई एल्टीट्यूड वारफेयर स्कूल गुलमर्ग (हवास), वायुसेना, थलसेना और एसडीआरएफ संयुक्त रूप से इसमें जुटे हैं।