धर्मनगरी जोशीमठ दौरे से लौटने के बाद मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी का बड़ा बयान आया है. मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा कि अब सभी हिल स्टेशन की बियरिंग कैपेसिटी का आकलन कराया जाएगा. यदि कोई शहर बियरिंग कैपेसिटी को पार कर गया है, तो वहां निर्माण कार्यों पर व्यवस्थित तरीके से रोक लगाई जाएगी. इस बीच, सुप्रीम कोर्ट में CJI जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ जोशीमठ संकट पर दायर याचिका की सुनवाई करेगी. याचिका में मांग की गई है कि जोशीमठ संकट को ‘राष्ट्रीय आपदा’ घोषित की जाए. फिलहाल इसे भू-धंसाव वाला क्षेत्र घोषित किया गया है.दरअसल, जोशीमठ में भू-धसाव के पीछे अनियंत्रित निर्माण भी जिम्मेदार माना जा रहा है. बेतरतीब और अनियोजित निर्माण का जो दंश आज जोशीमठ झेल रहा है, उत्तराखंड में पहाड़ के हर छोटे-बडे शहरों की कहानी कमोबेश जोशीमठ जैसी ही है. ऐसे में मांग उठने लगी है कि समय रहते कुछ गंभीर कदम उठा लिए जाने चाहिए.साल 2003 में वरूणावत पर्वत पर भू-स्खलन हुआ था. वरूणावत पर्वत की तलहटी में बसे शहर में जब पहाड़ की तलहटी को काटकर अनियंत्रित निर्माण शुरू हुए तो पहाड़ शहर पर ऐसा बरपा की 200 से अधिक घर शिप्ट करने पड़े. अब जोशीमठ भी उसी त्रासदी को दोहरा रहा है. लूज मलबे और बोल्डर के ढेर पर बसा जोशीमठ में परियोजनाओं के क्रियान्वयन और अंधाधुंध होटल एवं भवनों के अनियोजित निर्माण से यह शहर अपनी बियरिंग कैपेसिटी को पार कर गया है. अब शहर को बरबादी के कगार पर हे. भूगर्भ विज्ञानी एसपी सती का कहना है कि पहाड़ के कस्बे इसी तरह टाइम बॉम बने बैठे हैं, लिहाजा अब समय आ गया है कि पहाड़ में विकास के लिए पूरे अध्ययन के साथ एक समग्र नीति बनाई जानी चाहिए.