उत्तराखंड में पर्यटन की अपार संभावनाओं को देखते हुए ढांचागत सुविधाओं के विकास की दिशा में प्रदेश सरकार ने अब तेजी से कदम बढ़ाने शुरू कर दिए हैं। सरकार ने केदारनाथ, नैनीताल, हेमकुंड साहिब, पंचकोटी-टिहरी, औली-गोरसौं, मुनस्यारी-खलियाटाप और ऋषिकेश- नीलकंठ रोपवे की स्थापना के लिए केंद्र सरकार से करार किया है। इन सात रोपवे के निर्माण से केदारनाथ, हेमकुंड साहिब जैसे धार्मिक स्थलों पर हर उम्र के तीर्थयात्री दर्शनों के लिए आसानी से पहुंच सकेंगे। यही नहीं, रोपवे के जरिये सैलानी और तीर्थयात्री यहां के प्राकृतिक नजारों से रूबरू होंगे।
जाहिर है कि इस पहल के आकार लेने पर पर्यटन और तीर्थाटन को तो पंख लगेंगे ही, यात्री प्रदूषणमुक्त सफर का लुत्फ भी उठा सकेंगे। वैसे भी पर्यावरणीय दृष्टि से संवेदनशील उत्तराखंड के पर्यावरण को सुरक्षित रखने के लिए इस तरह की पहल आवश्यक है। इससे सड़कों के निर्माण से पहाड़ों के दरकने की संभावना से भी निजात मिल सकेगी।
निश्चित रूप से यह पहल सराहनीय मानी चाहिए, लेकिन पिछले अनुभवों को देखते हुए संशय के बादल भी कम नहीं हैं। यह पहला मौका नहीं है, जब राज्य सरकार ने रोपवे के लिए पहल की है। पूर्व में केदारनाथ, गंगोत्री-यमुनोत्री के लिए भी रोपवे प्रस्तावित किए गए थे, लेकिन तब पर्यावरणीय समेत अन्य कारणों के चलते यह मुहिम परवान नहीं चढ़ पाई थी। इसके अलावा देहरादून को पहाड़ों की रानी मसूरी से जोड़ने के लिए रोपवे लंबे समय से मंजूर है, लेकिन अभी तक इसका निर्माण नहीं हो पाया है।