अफगानिस्तान में तालिबान नई सत्ता संभालने जा रहा है। उसकी तरफ से लगातार आश्वासन दिए जा रहे हैं कि यहां किसी को खतरा नहीं होगा। वह किसी के खिलाफ बदले की भावना से कार्रवाई नहीं करेगा। साथ ही उसने महिलाओं को भी भरोसा दिया है कि उनके खिलाफ सख्ती नहीं बरती जाएगी और उन्हें उनका हक दिया जाएगा। लेकिन तालिबान के इतिहास को देखते हुए उसपर किसी को यकीन नहीं हो रहा है। यही वजह है कि देश छोड़ने का सिलसिला लगातार जारी है। लोगों में दहशत बरकरार है और हर तरफ अफरातफरी का माहौल है।
इस बीच अफगानिस्तान से लोगों के निकलने का सिलसिला जारी है। अमेरिकी फौज ने अब तक 3200 लोगों को अफगानिस्तान से निकाला है। तमाम दूसरे देश भी अपने नागरिकों और अपने मददगार लोगों को निकाल रहे हैं।
तालिबान का बड़ा एलान
एक दिन पहले काबुल हवाई अड्डे पर अराजकता के बीच लोगों को अपने शासन से घबराकर देश छोड़कर भागते देख तालिबान ने मंगलवार को बड़ी घोषणा की है। उसने अफगानिस्तान में आम माफी का एलान किया और महिलाओं को अपनी सरकार में शामिल होने का आग्रह किया। उसने सरकारी कर्मचारियों से काम पर वापस लौटने का आग्रह भी किया।
तालिबान के सांस्कृतिक आयोग के सदस्य एनामुल्लाह समांगानी ने मंगलवार को अफगानिस्तान के सरकारी टीवी पर देशभर में हमले के बाद पहली बार संघीय स्तर से यह टिप्पणी की। उन्होंने कहा, तालिबान सरकार का ढांचा अभी पूरी तरह साफ नहीं है, लेकिन हमारे तजुर्बे के आधार पर, इसमें पूर्ण इस्लामी नेतृत्व होना चाहिए और सभी पक्षों को इसमें शामिल करना चाहिए।
फिलहाल सरकार बनाने का एजेंडा तय किया जा रहा है और जल्द ही प्रस्ताव की घोषणा होगी। अफगानिस्तान के लिए आतंकवादी शब्द का इस्तेमाल करते हुए समांगानी ने कहा, इस्लामी अमीरात नहीं चाहता है कि महिलाएं पीड़ित हों, तालिबान का मकसद महिलाओं के खिलाफ हिंसा को रोकना भी है। उन्होंने कहा, शरिया कानून के अनुसार उन्हें सरकारी ढांचे में शामिल होना चाहिए।
महिलाओं को साथ लेना तालिबान की मजबूरी
तालिबान ने पिछले शासन में भी महिलाओं पर कई तरह के जुल्म किए और वह महिलाओं को काम पर जाने के सख्त खिलाफ रहा है। लेकिन इस बार वह महिलाओं को कार्यस्थलों पर लेने के लिए मजबूर है, क्योंकि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर वह इस बार अपनी छवि बदलकर चीन, अमेरिका और दूसरे देशों का समर्थन जुटाना चाहता है। यूएनएससी ने भी तालिबान से महिलाओं की पूर्ण भागीदारी की अपील की है।
काबुल में शांति लेकिन लोग दहशत मेें
काबुल में मंगलवार को शांति दिखाई दी। हालांकि कई निवासी घर पर छिपे हुए हैं और विद्रोहियों के कब्जे के बाद जेलों को भी खाली कराने तथा शस्त्रागार लूट लेने के बाद वे डरे हुए हैं।
पुरानी पीढ़ियां अपने समय के कट्टर इस्लामी शासन को याद करती हैं जो 11 सितंबर 2001 को अमेरिका पर हुए हमले से पहले अफगानिस्तान में हुआ करता था।
उस वक्त तालिबान के कट्टर आदेश न मानने वालों को सार्वजनिक रूप से पत्थर से मारना (संगेसार) या सिर कलम कर देना एक सामान्य प्रक्रिया थी। इन्हीं कारणों से लोग अफगानिस्तान में तालिबान के सत्ता कब्जाते ही भाग जाना चाहते हैं।
तालिबानी नेता के वार्ता के लिए काबुल में मौजूद होने की सूचना
तालिबान के वरिष्ठ नेता आमिर खान मुत्ताकी को सियासी नेतृत्व से वार्ता के लिए काबुल में मौजूद बताया जा रहा है। वार्ता की जानकारी रखने वाले एक अधिकारी ने गोपनीयता की शर्त पर बताया कि राजनीतिक नेतृत्व में कभी देश की वार्ता परिषद की अध्यक्षता करने वाले अब्दुल्ला अब्दुल्ला और पूर्व राष्ट्रपति हामिद करजई शामिल हैं।
तालिबान शासन के वक्त मुत्ताकी उच्च शिक्षामंत्री था और उसने राष्ट्रपति अशरफ गनी के देश से भागने के पहले ही अफगानिस्तान के सियासी नेताओं से संपर्क साधना शुरू कर दिया था। काबुल में जारी वार्ता का मकसद सरकार में गैर-तालिबान नेताओं को शामिल करना है।
अफगानिस्तान में खुले सिर्फ रूस, चीन और पाक दूतावास
काबुल पर तालिबान का कब्जा होने के बाद अधिकांश देशों ने वहांस से अपने दूतावास के कर्मचारियों को बाहर निकालना शुरू कर दिया है। अब यहां सिर्फ तीन देशों रूस, चीन और पाकिस्तान के दूतावास खुले हैं। इंडोनेशिया ने अपना दूतावास बंद कर वहां सिर्फ एक छोटा राजनयिक मिशन रखने को कहा है।
पाक विदेश मंत्री शाह कुरैशी ने काबुल में उसके दूतावास के काम करने और हर तरह की कॉन्सुलर सुविधा देने की बात कही जबकि चीन ने तालिबान से दोस्ताना रिश्ते बनाने की बात की है। उधर, रूस की योजना भी दूतावास कर्मियों को बाहर निकालने की नहीं है। हालांकि वह कुछ कर्मचारियों को वापस जरूर बुलाएगा।
अफगानिस्तान में बने नई, एकीकृत सरकार : यूएनएससी
यूएनएससी (संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद) ने समावेशी विचार विमर्श के जरिये अफगानिस्तान में नई, एकीकृत और प्रतिनिधित्व वाली सरकार के गठन की अपील की है, जिसमें महिलाओं की पूर्ण भागीदारी हो।
भारत की अध्यक्षता में यूएनएससी ने कहा, यह सुनिश्चित करना जरूरी है कि तालिबान या कोई अन्य अफगान समूह किसी अन्य देश से गतिविधियां चलाने वाले आतंकियों का साथ नहीं दे।
इस दौरान यूएन में अफगानिस्तान के राजदूत गुलाम इसाकजई ने कहा कि अब आरोप-प्रत्यारोप का समय नहीं रह गया है। उन्होंने विश्व निकायों से आग्रह किया कि वे अफगानिस्तान में मानवाधिकारों का हनन तत्काल रोकें।
गेट खुलते ही 640 लोग घुस गए विमान के भीतर
तालिबान शासन के डर से सोमवार को देश छोड़ने की जद्दोजहद में जुटे तीन लोग जिस विमान पर लटककर ऊंचाई से गिरकर मर गए थे उसका वीडियो मंगलवार को जारी हुआ है। यह वीडियो चौंकाने वाला है क्योंकि यह इस बात की स्पष्ट गवाही है कि अफगानी लोग तालिबान शासन में रहना नहीं चाहते हैं।
डिफेंस वन वेबसाइट की ओर से जारी वायरल तस्वीर में अमेरिकी वायुसेना के सी-17 ग्लोबमास्टर के अंदर की तस्वीर दिख रही है। इसमें 134 सीटें होती हैं लेकिन जैसे ही विमान का गेट खुला उसमें धड़ाधड़ 640 लोग सवार हो गए। अंदर घुसे लोग तालिबान के डर से बाहर निकलने को तैयार नहीं थे।
हालात इतने खराब हो गए थे कि विमान के आते ही लोग किसी डग्गामार बसों की तरह इसमें बैठने को आतुर हो गए। ये अफगानी नागरिक किसी भी तरह से देश छोड़ देना चाहते थे।
इसी कारण जब विमान के अंदर जगह नहीं मिली तो लोग विमान के पहियों के पास एक रॉड को ही जोर से पकड़कर चिपक गए। हालांकि विमान के उड़ान भरने के बाद तीन लोग नीचे गिर गए और मारे गए।