काबुल में तालिबान की नवगठित सरकार सिर्फ कहने को अफगानिस्तान का प्रतिनिधित्व करती है असलियत में वहां का हर पत्ता फिलहाल पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आइएसआइ के कहने पर ही खड़क रहा है। न सिर्फ तालिबान सरकार के सारे मंत्री बल्कि अफगानिस्तान के विभिन्न शहरों में मेयरों की नियुक्ति भी पाकिस्तान के इशारे पर हो रही है। आइएसआइ के अधिकारियों की पूरी फौज काबुल में तैनात है और इस बात का पूरा इंतजाम करने की कोशिश है कि अफगानिस्तान सरकार आने वाले दिनों में जब सामान्य तौर पर काम शुरू करे तो उसका कोई भी संपर्क भारत के साथ न हो।
अफगानिस्तान के हालात को लेकर भारतीय खुफिया एजेंसियों के आकलन से जो तस्वीर सामने आ रही है वह भारत की कूटनीतिक चुनौतियों की तरफ भी इशारा करती है। खुफिया एजेंसियों के सूत्रों का कहना है कि काबुल में आइएसआइ एक समानांतर सत्ता चला रही है। काबुल, कंधार व दूसरे शहरों से अशरफ गनी सरकार के तहत सेवा दे चुके पुलिस और सरकारी अधिकारियों की हत्या किए जाने की खबरें हैं। वहां आइएसआइ के नेतृत्व में तालिबानी आतंकियों का एक गुट तैयार किया गया है जो पूर्व लोकतांत्रिक सरकार के बेहद विश्वस्त लोगों को खोज खोज कर खत्म कर रहा है। तालिबान के मुख्य नेताओं को भी इसकी खबर नहीं है। एक दिन पहले आइएसआइ के डीजी लेफ्टिनेंट जनरल फैज हामिद की तरफ से चीन, ईरान, रूस, ताजिकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान, उज्बेकिस्तान के साथ की गई बैठक का एक बड़ा मकसद यह था कि इन सभी देशों को यह भरोसा दिलाया जा सके कि अफगानिस्तान की नई तालिबान सरकार इन देशों के हितों के खिलाफ काम नहीं करेगी। साथ ही इन देशों को यह संदेश देना भी है कि अफगानिस्तान के संदर्भ में अब वहीं कर्ता-धर्ता है।
यह पाकिस्तान का ही दबाव है कि भारत के साथ सामान्य रिश्ते की बात करने के बाद तालिबान ने अब चुप्पी साध ली है। इसका पहला संकेत इस बात से मिलता है कि तालिबान ने अपने प्रतिनिधियों की दूसरे देशों के राजदूतों या अधिकारियों से मुलाकात का सार्वजनिक खुलासा किया है लेकिन कतर में भारत के राजदूत के साथ तालिबानी नेता मोहम्मद अब्बास स्टेनकजई से मुलाकात को लेकर अभी तक कुछ नहीं कहा गया है। इस मुलाकात से पहले स्टेनकजई को तालिबान सरकार के विदेश मंत्री की दौड़ में सबसे प्रबल प्रतिनिधि माना जाता था लेकिन उन्हें उप-विदेश मंत्री ही बनाया गया है।
हक्कानी नेटवर्क के सदस्यों का मंत्री बनना भारत विरोधी कदम
तालिबान की तरफ से घोषित सरकार में हक्कानी नेटवर्क के कई बड़े नेताओं को जगह मिलने को भी उसके भारत विरोधी कदम के तौर पर ही देखा जा रहा है। खुफिया एजेंसियों के सूत्रों का कहना है कि पाकिस्तान की पूरी कोशिश यही प्रतीत हो रही है कि अफगानिस्तान के संचालन में भारत की कोई हिस्सेदारी नहीं हो।