देहरादून में एसटीएफ ने प्रेमनगर के डूंगा गांव में चल रहे फर्जी कॉल सेंटर पर छापा मारकर वहां से दो युवकों को गिरफ्तार किया है। कॉल सेंटर से अमेरिका के लोगों को टेक सपोर्ट के नाम पर ठगा जा रहा था। उन्हें फर्जी एंटी वायरस बेचकर अच्छी-खासी रकम ऐंठी जा रही थी। कॉल सेंटर का मुख्य संचालक और उसके तीन साथी एसटीएफ की पकड़ में नहीं आ सके। इनकी तलाश में एसटीएफ ने दबिश शुरू कर दी है।
एसटीएफ एसएसपी अजय सिंह ने बताया कि प्रेमनगर क्षेत्र में एक फर्जी कॉल सेंटर संचालित होने की सूचना मिल रही थी। इस पर एक टीम डूंगा गांव पहुंची और यहां एक मकान में छापा मारा। मकान के ऊपरी तल पर एक कॉल सेंटर बनाया गया था। यहां पर 15 कंप्यूटर रखे हुए थे। अंदर एक ऑफिस में दो युवक बैठकर लैपटॉप पर काम कर रहे। पुलिस को देखते ही दोनों वहां से भागने का प्रयास करने लगे। दोनों को पकड़ लिया। इन्होंने अपने नाम सुनीत गौतम निवासी छतरपुर एन्क्लेव, दिल्ली और सुमित धवन निवासी रामपुर, मंडी रोड देहरादून बताए। आरोपियों ने बताया कि यह एक फर्जी कॉल सेंटर है। इसके माध्यम से वह अमेरिका के विभिन्न राज्यों में लोगों को फोन कर उन्हें टेक सपोर्ट के नाम पर ठगते हैं।
इस कॉल सेंटर का मुख्य संचालक अभिनव कुमार निवासी हतसर गंज, बिहार है। इसके अलावा उसके तीन साथी अनिकेत, पियूष और कुलदीप भी एसटीएफ के हत्थे नहीं चढ़े हैं। मौके से एसटीएफ को दो लैपटॉप और 15 कंप्यूटर मिले हैं। एसटीएफ के अनुसार उन्होंने अमेरिका के नागरिकों से करीब एक लाख डॉलर का ट्रांजेक्शन किया है। शनिवार को गिरफ्तार किए गए दोनों आरोपियों को न्यायालय में पेश किया गया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया।
ऐसे करते हैं ठगी
सुनीत गौतम ने एसटीएफ को बताया कि यह कॉल सेंटर वह अनिभव और अन्य साथियों के साथ चलाता है। चार-पांच युवकों को नौकरी पर भी रखा हुआ है। इनका काम ऑनलाइन रिंग सेंटर नाम की वीओआईपी सर्विस देने वाली वेबसाइट के माध्यम से इनकमिंग और आउट गोइंग कॉल करना है। इसके बाद विदेशी नागरिकों के लैपटॉप और कंप्यूटर पर एक पॉपअप मैसेज किया जाता है। उनसे फिर बात की जाती है और कहा जाता है कि उनकी विंडो में वायरस है। इस पर वह कहते हैं कि उनके पास एंटी वायरस है तो उनसे कहा जाता है कि यह केवल फाइलों को प्रोटेक्ट करता है। इसके लिए नेटवर्क सिक्योरिटी की आवश्यकता है। इसके बाद उन्हें माइक्रोसॉफ्ट क्विक असिस्ट से उनके डेस्कटॉप और लैपटॉप का एक्सेस ले लिया जाता है। उसमें अपना ही एक फर्जी एंटीवायरस अपलोड किया जाता है। इसके बदले उनसे 700 डॉलर लिए जाते हैं।