उत्तराखंड लोक सेवा आयोग (Uttarakhand Public Service Commission) की मुख्य परीक्षा की मेरिट में शामिल करने की मांग को लेकर बाहरी राज्यों की महिला अभ्यर्थी सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) गयी थीं लेकिन उन्हें सुप्रीम कोर्ट से राहत नहीं मिल सकी है। महिला अभ्यर्थियों ने सुप्रीम कोर्ट में उत्तरखंड सरकार की एसएलपी (PCS Main Exam SLP) पर सुनवाई के दौरान मुख्य परीक्षा में शामिल होने का अनुरोध किया था। सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान कहा कि महिला क्षैतिज आरक्षण (Women Horizontal Reservation) के लिए राज्य सरकार एक्ट बना चुकी है।राज्य सरकार बनाम पवित्रा चौहान व अन्य के मामले में एसएलपी पर न्यायमूर्ति वी. रामसुब्रमण्यम व न्यायमूर्ति पंकज मित्तल ने सुनवाई की। सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा है कि उच्च न्यायालय ने राज्य की महिलाओं को 30 प्रतिशत क्षैतिज आरक्षण पर रोक लगा दी थी। जिस मुख्य आधार पर उच्च न्यायालय ने अंतरिम रोक लगाई, वह यह थी कि सरकारी आदेश के माध्यम से ऐसा आरक्षण नहीं दिया जा सकता।राज्य की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सुप्रीम कोर्ट में पैरवी की। उन्होंने कोर्ट में उत्तराखंड लोक सेवा (महिलाओं के लिए क्षैतिज आरक्षण) अधिनियम 2022 की प्रति पेश की। आदेश में कहा गया कि अधिनियम को राज्यपाल की अनुमति मिल चुकी है। 10 जनवरी को इसका राजपत्रित प्रकाशन हो चुका है। इस अधिनियम को उच्च न्यायालय में चुनौती भी दी गई है।