उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी के दोबारा सत्ता में आते ही यह अटकलें जोर पकड़े हुए हैं कि योगी आदित्यनाथ के नए मंत्रिमंडल में कौन-कौन जगह पाएगा। चुनाव जीतने वालों में तमाम विधायक बड़े कद के हैं, जो पहले भी मंत्री रहे हैं। उनमें से अधिकांश की दूसरी पारी पर संदेह कम ही है। इसके साथ ही यह भी लगभग तय है कि इस बार योगी मंत्रिमंडल में दलितों और पिछड़ों का ‘डबल इंजन’ ज्यादा बड़ा लगाया जाएगा। 2024 के लोकसभा चुनाव के मद्देनजर लगभग तय है कि पिछली सरकार की तुलना में इस बार इन वर्गों की भागीदारी बढ़ाई जाएगी।
भाजपा ने विधानसभा चुनाव जीतने की रणनीति में जातीय समीकरणों का विशेष ध्यान रखा। यूं तो पार्टी की नीति और रणनीति में जोर ‘सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास’ का ही रहा, लेकिन दलित और पिछड़ा वर्ग को इसका संदेश देने के लिए प्रयास भी खूब किए। चूंकि, पिछड़ा वर्ग भाजपा के साथ पहले से जुड़ा है, इसलिए उसे मजबूती से थामे रखने के लिए 2017 के विधानसभा चुनाव में प्रचंड जीत के बाद इस वर्ग के विधायकों को मंत्रिमंडल में मजबूत प्रतिनिधित्व दिया गया।
योगी सरकार के तत्कालीन 49 सदस्यीय मंत्रिमंडल में 17 मंत्री अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) से थे। तब अनुसूचित जाति का वोट जुटाने के जतन में भाजपा जुटी हुई थी। पिछले चुनाव में भी पार्टी को इस वर्ग का वोट मिला, लेकिन वह उम्मीद के मुताबिक नहीं था। फिर भी दलितों को संदेश देने के लिए मंत्रिमंडल में पांच मंत्री दलित वर्ग से बनाए गए। इसके बाद इस वर्ग के लिए तमाम लाभार्थी योजनाएं चलाई गईं, जिनका असर हुआ।
इसके बावजूद जब विधानसभा चुनाव करीब आ गए तो केंद्रीय मंत्रिमंडल के विस्तार में उत्तर प्रदेश को खास तवज्जो दी गई। यहां से सात सांसदों को मंत्री बनाया गया, जिनमें एक सामान्य वर्ग से तो तीन-तीन दलित और पिछड़ा वर्ग से थे। इसी फार्मूले पर योगी सरकार बढ़ी और सितंबर में हुए मंत्रिमंडल के अंतिम विस्तार में सात नए मंत्री बनाए गए। इनमें एक सवर्ण, जबकि तीन दलित और तीन पिछड़ा वर्ग के थे। इस तरह पिछड़ा वर्ग के मंत्रियों की संख्या 21 तो अनुसूचित जाति के सात और अनुसूचित जनजाति के एक मंत्री हो गए।
विधानसभा चुनाव के नतीजों ने साफ कर दिया है कि भाजपा के साथ पिछड़ा वोट बैंक अब भी मजबूती से जुड़ा है तो बसपा से छिटककर दलित वोट अच्छी मात्रा में आ चुका है। यही कारण है कि बसपा 403 में से मात्र एक ही सीट जीत सकी, जबकि भाजपा अकेले 255 और गठबंधन सहयोगियों के साथ कुल 273 सीटें जीती है। भाजपा गठबंधन से पिछड़ा वर्ग के 89, अनुसूचित जाति के 63 और अनुसूचित जनजाति के दो विधायक हैं।
इसके साथ ही पार्टी ने लोकसभा चुनाव की तैयारी शुरू कर दी है। लिहाजा, माना जा रहा है कि योगी मंत्रिमंडल का गठन इसी रणनीति के साथ होगा कि पिछड़े भाजपा को बढ़ाने में फिर आगे रहें और दलित भी साथ जुड़ा रहे। चूंकि कुल जीते विधायकों में 56 प्रतिशत दलित-पिछड़ा वर्ग से हैं, ऐसे में तय है कि इन दो वर्गों से चुनकर आए विधायकों को मंत्रिमंडल में तरजीह मिलेगी।
कई चेहरों को समीकरणों का बल : योगी आदित्यनाथ मंत्रिमंडल के संभावित नामों को लेकर तमाम नाम इंटरनेट मीडिया पर चल रहे हैं। इनमें से कुछ की चर्चा को तो समीकरणों का भी बल मिल रहा है। मसलन, उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य चुनाव हार गए हैं, लेकिन वह पिछड़ों के प्रमुख नेताओं में शामिल हैं। उनका यह भी प्रभाव माना जा रहा है कि स्वामी प्रसाद मौर्य के सपा में जाने के बावजूद वह वोटबैंक भाजपा के साथ रहा। ऐसे में केशव इसी पद पर दूसरी पारी शुरू कर सकते हैं। पुष्कर सिंह धामी के चुनाव हारने के बाद भी उत्तराखंड का मुख्यमंत्री बनाए जाने से इस बात की संभावना और बढ़ गई है।
स्वतंत्रदेव सिंह का भी नाम : पिछड़ों के ही नेता के रूप में प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्रदेव सिंह का नाम है। माना जा रहा है कि कुर्मी वोट इस बार उम्मीद के मुताबिक नहीं मिला है। स्वतंत्रदेव इसी वर्ग से ताल्लुक रखते हैं, इसलिए इस वर्ग को करीब लाने और संगठन की मेहनत का इनाम उन्हें उपमुख्यमंत्री बनाकर दिया जा सकता है। इनमें से किसी एक को उपमुख्यमंत्री बनाए जाने की संभावना है। उपमुख्यमंत्री डा. दिनेश शर्मा के लिए दो विकल्प बताए जा रहे हैं। उनका यह पद बरकरार रह सकता है या प्रदेश अध्यक्ष बनाए जा सकते हैं।
ये भी नाम चर्चा में : संभावना यह भी है कि यदि पार्टी आगरा ग्रामीण से विधायक बनीं उत्तराखंड की पूर्व राज्यपाल बेबीरानी मौर्य को डिप्टी सीएम बनाने की बजाए विधानसभा अध्यक्ष बना दे और दिनेश शर्मा उसी पद पर रहें तो प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी किसी दलित नेता को दी जा सकती है। सरकार या संगठन में लाने के लिए पार्टी के पास एमएलसी विद्याराम सोनकर और लक्ष्मण आचार्य जैसे दलित नेता भी हैं। इसी वर्ग से कन्नौज विधायक असीम अरुण, हाथरस विधायक अंजुला माहौर भी हैं। योगी मंत्रिमंडल के अंतिम विस्तार में राज्यमंत्री बनाए गए संजीव गोंड अनुसूचित जनजाति से हैं, जो फिर विधायक बने हैं। इन्हें भी फिर मंत्रिमंडल में जगह मिलना तय माना जा रहा है।